खा ध२५७॥ ।(#।+५&
(+॥0॥)
3 लक
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को |>
न करवा चौथ का ब्रत रखा जाता है। सुहागिनें|
पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु यह ब्रत|&
५ करती हैं। सुहांगिनों को इस दिन निर्जला ब्रत|:
३ रखना चाहिए। रात्रि को चन्द्रमा निकलने पर|5
उसे अर्घ्य देकर पति से आशीर्वाद-लेकर भोजन|>
है ग्रहण करना चाहिए। *
पूजन विधि
करवा चौथ के दिन व्रत रखें और एक |
पट्टे पर जल से भरा लौटा रखें। मिट्टी के[2
एक करवे में गेहूँ और ढक््कन में चीनी व|<
*- सामर्थ्यानुसार पैसे - लक । रेली, चावल, गुड़ आदि से गणपति की पूजा करें। रोली से करवे |?
>| पर स्वास्तिक बनाएं और ॥3 बिन्दियां रखें। स्वयं भी बिन्दी लगाएं और गेहूं के 3 दाने |
5| दाएं हाथ में लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अपनी सासूजी के चरण स्पर्श करें | >
>| और करवा उन्हें दे दें। पानी का लोटा और गेहूं के दाने अलग रख लें। रात्रि में चन्रोदय
| होने पर पानी में गेहूं के दाने डालकर उसे अर्ध्य दें, फिर भोजन करें।
दि कहानी पंडिताइन से सुनो हो तो गेहूं, चीनी और पैसे उसे दे दें। यदि बहन-
<| बेटी हो तो गेहूं)चीनी और पैसे उसे दे'दें।
करवा चौथ व्रत कथा
“| एक साहूकार के एक पुत्री और सात पुत्र थे। करवा चौथ के दिन साहूकार |?
की प्रत्ती, बेटी और बहुओं ने व्रत रखा। रात्रि को साहुकार के पुत्र भोजन करने
लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने के लिए कहा। बहन बोली--'' भाई!
>| अभी चन्द्रमा नहीं निकला है, उसके निकलने पर मैं अर्ध्य देकर भोजन करूँगी।'”
इस पर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर
डझ््ू्रअर555अघ 55
छ्ड़ड़
इ5 555 पद 5
कर उऊडडड अं ऊड अं ड> 3उउडऊ
उसमें से प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा-
है| देकर भोजन कर लो।”
के बहन अपनी भाभियों को भी बुला लाई कि तुम भी चन्द्रमा को अर्ध्य दे लो, हर
»| किन्तु वे अपने पतियों की करतूतें जानती थीं सी 'कहा--'“बाईजी! अभी चन्धमा |.
| नहीं निकला है। तुम्हारे भाई चालाकी करते ईए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा |£
$| रहे हैं।”
“| किन्तु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए
प्रकाश को ही अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने से गणेश |
ई| जी उससे रूष्ट हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ |?
घर में था, उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की पुत्री को जब अपने दोष का |+
<| पता लगा तो वह पश्चाताप से भर उठी। गणेश जी से क्षमा-प्रार्थना करने के बाद |
5 | उसने पुनः विधि-विधान से चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका |?
*| आदर-सत्कार करते हुए, सबसे आशीर्वाद लेने में हीं उसने मन को लगा दिया।|-
:। इस प्रकार उसके श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देख गणेश जी उस पर प्रसन|[*
न्नककन का... ।
'बहन! चन्द्रमा निकल आया है। अर्घ्य
| अडड़उऊडडडऊड अं ऊडऊ 3 25 5 ७
उड़डड
छू छू ाऋछरएछ,
रछबछ
॥ हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे उसे बीमारी से मुक्त करने के पश्चात्
डै| धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया।
इस प्रकार जो कोई छल-कपट से रहित श्रद्धाभक्तिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करेगा,
>| बह सब प्रकार से सुखी होते हुए कष्ट-कंटकों से मुक्त हो जाएगा। -
विनायक स्वरूप गणेश जी की कथा
किसी नगर में अपने पुत्र और पुत्रवधु के साथ एक नेत्रहीत बुढ़िया रहती थी।
बह श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से नित्य ही गणेश जी की पूजा-अर्चना करती थी।
एक दिन प्रसन्न हो गणेश जी प्रकट हुए और बोले--“'बुढ़िया मां! तू जो चाहे
सो मांग ले।'
चुढ़िया बोली--'कैसे और क्या मांगू? मुझे तो मांगना आता ही नहीं है।'”
तब गणेश जी बोले--' “अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग लेना। मैं कल फिर आऊंगा।"'
चुढ़िया ने बेटे से पूछा तो बेटा बोला कि ' धन मांग लो।' बहू बोली कि 'पोता मांग लो।
एऋकपद्ट्््कदबद् फू पद ८
तब बुढ़िया ने सोचा कि ये दोनों तो अपने-अपने मतलब क्री बात कह रहे हैं।
अडदडऊडडडऊड 3 59929 %5 35 (६
0 &छछझूझए
का बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा। पड़ोसिनों ने कहा--“बुढ़िया, तू, तो थोड़े ही
तेरा बाकी जीवन आयाम से कट जाए।''
बहू-बेटा राजी हों, वह मांग लूं और अपने मतलब को चीज भी मांग लूं। अगले
दिन गणेश जी आए और बोले--“'बुढ़िया मां! जो चाहे सो मांग ले।''
बुढ़िया बोली--''यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे नौ करोड़ की माया दें। निरोगी
>| काया दें, आंखों की रोशनी दें, पोता दें, सब परिवार को सुख दें और अंत में
मोक्ष दें।"'
गणेश जी बोले--“बुढ़िया मां! तूने तो हमें ठग लिया। किन्तु तेरा वर तुझे मिलेगा--
तथास्तु!'”' इतना कहकर गणेश जी अंतर्धान हो गए। बुढ़िया को बर के अनुसार
सब कुछ मिल गया।
>छ2&>-5कऋछरफ
2७555 >/5
ही हमें भी देने की कृपा करना। बोलो गणपति बाबा की जय!
दिन जिएगी। क्यों तू धन मांगे और क्यों पोता मांगे। तू तो आंखें मांग ले, जिससे डे
लेकिन उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों की बात नहीं मानी। उसने सोचा कि जिसमें |
टएहढडछ
टूट हट चुत तह!
है सिद्धि विनायक गणेश जी! जैसे तुमने उस बुढ़िया को सब कुछ दिया, वैसे |>
3
करवा चौथ का उजमन
|. एक थाल में चार-चार पृड़ियां, तेरह जगह रखकर उनके ऊपर थोड़ा-थोड़ा हलवा रख
दें। थाल में एक साड़ी, ब्लाउज और सामर्थ्यनुसार रुपए भी रखें। फिर उसके चारों ओर
| रोली-चावल से हाथ फेरकर अपनी सासूजी के चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें। तदुपरांत तेरह
3 | ब्राह्मण/ब्राह्मणियों को आदर सहित भोजन कराएं, दक्षिणा दें तथा रोली की बिन्दी/तिलक
लगाकर उन्हें बिदा करें।
छठ
अहोई अष्टमी का ब्रत सनन््तान की उललति, प्रगति और दीर्घायु के लिए होता
है। यह ब्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। जिस दिन (वार)
की दीपावली होती है, उससे ठीक एक सप्ताह पूर्व उसी दिन (वार) को अहोई |5
अष्टमी पड़ती है।
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8.
ही विधि
ब्रत करने वाली स्त्री को इस दिन उपवास
रखना चाहिए। सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक
की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएं, पुतली के
पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाएं। चाहें तो बना- |
बनाया चार्ट बाजार से खरीद सकती हैं।
सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर अहोई
माता की पूजा प्रारम्भ करने से पूर्व जमीन को
साफ करें। फिर चौक पूरकर, एक लोटे में
जल भरकर एक पटरे पर कलश की तरह |?
रखकर पूजा करें। |
ह ञ पूजा के लिए माताएं पहले से चांदी का एक |:
हु]. अहोई या स्याऊ और चांदी के दो मोती बनवाकर
दर ट
.. जज .. लें। फिर रोली, चावल व दूध-भात से अहोई का पूजन करें। जल से भरे लोटे
5 पर स्वास्तिक बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्यानुसार रुपए का बायना निकालकर
ऊ
अहोई व्रत कथा
>| प्राचीन समय की बात है। किसी स्त्री के सात पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था।
>कार्तिक मास में दीपावली से पूर्व वह अपने मकान की लिपाई-पुताई के लिए मिद्टी
रख लें और हाथ में सात दाने गेहूं लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अहोई की माला | >
| गले में पहन लें और जो बायनां निकाला था, उसे सासूजी का चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें। |
इसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर भोजन करें। दीपावली के पश्चात् किसी शुभ दिन [5
>|अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगाएं और जल के छोटे देकर आदर |?
छरूणछड़
तडूटू तह तहत हू]
. स््ह््य ध्च्प्पय्््प्स्र्य््य नम
.... में गई। स्त्री एक जगह से मिद्टी खोदने लगी। वहां सेई की मांद थी
उसकी कुदाली सेई के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया। यह |$
स्त्री दया और करुणा से भर गई। किन्तु अब क्या हो सकता था, वह पश्चाताप |-
हुईं मिद्टी लेकर घर चली गई। ऊ
कुछ दिनों बाद उसका बड़ा लड़का मर गया, फिर दूसरा लड़का भी। इस तरह |<
ही उसके सातों लड़के चल बसे। स्त्री बहुत दुःखी रहने लगी। एक दिन वह रोती |?
'पास-पड़ोस की बड़ी-बूढ़ियों के पास गई और बोली--'' मैंने जान-बूझक़र तो कभी |5
पाप नहीं किया। हां, एक बार मिट्टी खोदते हुए अनजाने में सेई के बच्चे को |.
लग गईं थी। तब से सालभर भी पूरा नहीं हुआ, मेरे सातों पुत्र मर गए।”'
उन स्त्रियों ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा--''तुमने लोगों के सामने अपना अपराध
कर जो पश्चाताप किया है, इससे तुम्हारा आधा पाप धुल गया। अब तुम
अष्टमी को भगवती के पास सेई और उसके बच्चों के चित्र बनाकर उनकी |<
करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा सारा पाप धुल जाएगा और तुम्हें फिर पहले |
तरह पुत्र प्राप्त होंगे।'” ३
उस स्त्री ने
»| तभी से इस ब्रत की परम्परा चल पड़ी।
अहोई की दूसरी कथा
<| रहता था। उसकी पत्नी का नाम चन्द्रिका था। चन्द्रिका बहुत गुणवान, शील-सौंदर्यपूर्ण,
5 | चरित्रवान और पतित्रता स्त्री थी। उनके कई संतानें हुईं, लेकिन वे अल्पकाल में
“| पली सोचा करते थे कि मरने के बाद हमारी धन-सम्पत्ति का वारिस कौन होगा।
<| भांति ब्त-पूजन करती रही। भगवती की कृपा से उसे फिर सात पुत्र प्राप्त हुए।
प्राचीन समय की बात है। दतिया नामक नगर में चन्द्रभान नाम का एक साहूकार |*
5| ही चल बसीं। संतानों के इस प्रकार मर जाने से दोनों बहुत दुःखी रहते थे। पति- |>
| एक दिन धन आदि का मोह-त्याग दोनों ने जंगल में वास करने का निश्चय |5
>| किया। अगले दिन घर-बार भगवान के भरोसे छोड़ वे वन को चल पड़े। चलते- |
>| चलते कई दिनों बाद दोनों बदरिकाश्रम के समीप एक शीतल कुंड पर पहुंचे। कुंड |*
>| के निकट अनन-जल त्याग कर दोनों ने मरने का निश्चय किया। इस प्रकार बैठे- |:
उप
जज ऊडड कक ऊ 3 3 39533 5
5 जड उन्हें सात दिन हो गए।,सातवें दिन आकाशवाणी हुई.
इसके बाद दोनों घर वापस आ गए। अष्टमी के दिन चन्द्रिका ने विधि-विधान से
<| श्रद्धापूर्वक ब्रत किया। रात्रि को पति-पत्नी ने स्नान कर स्वच्छ बस्त्र धारण किए। उसी
>| समय उन्हें अहोई देवी ने दर्शन दिए और बर मांगने को कहा। तब चन्द्रिका ने वर मांगा | *
«| कि 'मेरे बच्चे कम आयु में ही देबलोक को चले जाते हैं। उन्हें दीघांयु होने का बरदान | -
दे दें।' अहोई देवी ने 'तथास्तु' कहा और अन्तर्धान हो गईं। कुछ दिनों बाद चन्द्रिका
<| को पुत्र रलल की प्राप्ति हुई जो बहुत विद्वान, ग्रतापी और दीर्घायु हुआ। ड
अहोई व्रत का उजमन
“| जिस स्त्री के बेटा अथवा बेटे का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का उजमन !
करना चाहिए। एक थाल में चार-चार पूड़ियां .सात जगह रखें। फिर उन पर थोड़ा-|5
नन्न
“तुम लोग अपने प्राण:
अत त्यागो। यह दुःख तुम्हें पूर्वजन्म के पापों के कारण हुआ है। यदि चन्द्रिका अहोई |?
»| अष्टमी का ब्रत रखे तो अहोई देवी प्रसन होंगी और वरदान देने आएंगी। तब तुम |>
5| उनसे अपने पुत्रों की दीर्घायु मांगना।'”
हु]
>&छऋ&ऋ 5 झ5
झअ्अझझछ
हक,
छू व्क्प््कत फफप
कि. हलवा रख दें। थाल में एक तीयल|
(साड़ी, ब्लाउज) और सामर्थ्यानुसार
रखकर, थाल के चारों ओर हाथ फेरकर रो ड
के चरण स्पर्श करें तथा उसे सादर उन्हें दे|ः
दें। सासूजी तीयल व रुपए स्वयं रख लें एवं
हलवा-पूरी प्रसाद के रूप में बांट दें। हलवा
पूरी का बायना बहन-बेटी के यहां भी भेजना|
चाहिए।
'पर्व--दीपावली
दीपावली राष्ट्रीय एकता और सद्भावना का|
पर्व है। सभी वर्णों के लोग दीपावली बड़े|_
उल्लासपूर्वक मनाते हैं। दीपावली को पं:
महोत्सव रूप में मनाना श्रेयस्कर होता है।
लि
रहते हैं। यह पंच महोत्सव इस प्रकार मनाया जाना चाहिए--
(१) धनतेरस
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल द्वितीया अर्थात् पांच दिन तक दीपावली का क्रम जारी|?
रहता है। धनतेरस के दिन घर से बाहर “यमराज” के लिए दीपदान दें। इससे अकाल
मृत्यु का भय नहीं रहता। दीपदान करते समय निम्नलिखित श्लोक का जप करना चाहिए:
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सहा।
अयोदश्यां दीपदाना सूर्यज: प्रीचतामिव॥
आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वन्तरि का जन्म धनतेरस को हुआ था। इसलिए इस उत्सव| |
5| को धन्वन्तरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
(2) नरक चतुर्दशी
| प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर तुम्बी (लौकी) को अपने सिर से घुमाने के बाद
स्नान करना चाहिए। इस प्रकार का कर्म करने से नरक का भय व्याप्त नहीं होता। इसे|
व्च्क्ह््क््ड्तट्त
|| करते समय इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए--
छू 5 &ू४ऋ2ऋ>&<ऋ&#>5&58<&<&><ै रू
सीता लोष्ट सहायुक्तः संकष्टः दलान्वित:।
हर पापमपामार्ग श्राम्यमाण पुनः पुनः॥
इसी दिन भगवान ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी।
तत्पश्चात् भगवान ने राजा बलि को वरदान दिया था कि जो आज के दिन दान करेगा,
हरिप्रिया लक्ष्मी सदा उसके घर निवास करेंगी।
(3 ) लक्ष्मी पूजन
स्कन्द पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल अमावस्या के दिन प्रातःकाल उठकर स्नात करना|
ज्वाहिए। दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से पवित्र प्रसाद तैयार कर भगवान को अर्पण|
करना चाहिए। सायंकाल महालक्ष्मी का पूजन बिधिपूर्वक करने से धन की प्राप्ति होती
है। सायंकाल दीप जलाते समय निम्न श्लोक का जप करना चाहिए--
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यं धन सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विचाशाय: दीप ज्योति नमोउस्तुते॥
डडउठऊडडडड5 छ्ड़ है हक हू हुक एड कह क हू हू हुक कह कक चकु
555 5४55: 55 555 55555 ूैए ७
४ पपठ्द
कि
डड़ऊऊऊ ऊ >उऊ ऊ ऊ 4 डड़्ऊ
दोपावली का अर्थ दीप-पुंज प्रकाशित करना है, अंधकार को हरना हैं। दीपावली के दिन
कई अन्य इतिहास जुड़े हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन शरीर मुक्त हुए। जैन मत के अंतिम
तीर्थंकर भगवान महावीर ने इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया। महषिं दयानंद सरस्वती दीपावली को | <
5 ही निर्वाण को प्राप्त हुए। स्वामी रामतीर्थ इसी दिन जन्मे और इसी दिन जलसमाधि ली।
(4) अन्नकूट : गोवर्धन पूजा
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां गोबर
की मूर्ति बनाकर भगवान की पूजा करती हैं। संध्या समय अन्नादिक का भोग लगाकर दीपदान|>
करती हुई परिक्रमा करती हैं। तत्पश्चात् उस पर गऊ का बास (वाधा) कुदाकर उसके उपले |;
थापती हैं और बाकी को खेत आदि में गिरा देती हैं। इसी दिन नवीन अन्न का भोजन बनाकर
:| भगवान को भोग भी लगाया जाता है जिसे अन्नकूट कहते हैं। गोवर्धन पूजा का उत्सव मंथुरा,
“| बृन्दावन, गोकुल, काशी और नाधद्वार में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
(5) क्रातृ द्वितीया : भेवा दूज
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। यों तो सारे भारत में|*
नक्क्कक्द्कफ्फकफ7 द््
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५
इस पर्व की धूम रहती है, पर महाराष्ट्र में माऊ बीज, गुजरात में भाई बीज, बंगाल में
भाई फोटा व उत्तर प्रदेश में भ्रातृ द्वितीया के रूप में यह विशेष लोकप्रिय है। लोग इसे
यम द्वितीया भी कहते हैं।
यह सुखद अनुभूति का पर्व है। इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसके
हाथ का बना खाना ग्रहण करता है, वह धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। *
इस प्रकार जो मनुष्य यह “पंच महोत्सव पर्व-दीपावली' मनाता है, वह वर्ष भर अनेक
व्याधियों से दूर और धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। पंच महोत्सव पर्व मनाने से हम अंधकार
से प्रकाश की ओर बढ़ते हैं।
दीपावली और लक्ष्मी पूजन
महालक्ष्मी का जन्म समुद्रमंथन के दिन से माना जाता है। समुद्रमंथन से अप्सराओं
| की उत्पत्ति के पश्चात् लक्ष्मी जी पैदा हुईं। सुंदरता के कारण सुर और असुर सभी इनको
5 | चाहने लगे। इन्द्र ने इनको रत्लनजड़ित आसन दिया, नदियां सोने के घड़ों में इनके स्तान
लिए जल लाईं और ऋषियों ने इनका विधिपूर्वक अभिषेक किया। गंधर्व वाद्य बजाने
व्ध्स््क्प््क्शद्फपक कक फाफक पक फाफन छू डर
छरूडछ छः
झूएूइझूक कक ूझ ४०
[७४9५9५७४०5555४5>5555><5>5&ैऋ&55
... लगे। दिग्गज पूर्ण कलशों से उनको स्नान करानें|>|
लगे। सागर ने उन्हें पीले वस्त्र दिए। वरुण ने वैजयंती माला दी और विश्वकर्मा ने विविध|<
प्रकार के आभूषणों से विभूषित किया। इस ,प्रकार आभूषित लक्ष्मी जी ने स्वयं कमल[
कौ जयमाला लेकर हास्यपूर्वक विष्णु जी के गले में डाल दी। अप्सराओं ने मंगल-गान|+
£| किया और सभी देवताओं ने लक्ष्मीनारायण की स्तुति की।
जब श्रीकृष्ण ने योग-माया का आश्रय लेकर रासलीला का आयोजन किया तो उस समय|3
£| उनके वाम अंग से एक देवी/का जन्म हुआ, जो अत्यंत सुंदर थी। ईश्वर॑ की इच्छा से उसी |+,
»| समय उसने दो रूप धारण किए। ये दोनों ही रूप राधिका और महालक्ष्मी के हैं। ्*'
*| . देवराज इन्ध के घर में स्वर्गलक्ष्मी, पाताल में नागलक्ष्मी, राजगृहों में राजलक्ष्मी, अपने [3
£ | अंशावतारों के द्वारा सभी कुलवती स्त्रियों में गृहलक्ष्मी, कमलों में श्रीचंद और सूर्यमंडल|
| में शोभा, आभूषण, रत्न, फल, राजा, रानी, अन्न, वस्त्र, शुभस्थान, देवी-देवताओं की प्रतिमा, |+
| मंगल, कलश, मणि, मोती, माला, हीरा, दूध, चंदन, पेड़ की शाखाएं इत्यादि दिव्य पदार्थों ।*
में ये शोभा रूप विराजमान थीं। ऊ
मे पहले जारायण ने बैकुंठ में इनकी जा 'की। दूसरी बार
डै|शुक्ल और पौष शुक्ल अष्टमी के दिन इनकी पूजा की थी। इसके अतिरिक्त शरद ऋतु
>|में दीपावली के दिन एवं पौष संक्रांति के दिन भी देवताओं ने इनकी पूजा की।
5| इन्द्र, मनु, केदार, नल, नील, सबल, ध्रुव, उत्तानपाद, बलि, कश्यप, दक्षप्रजापति, कर्दम,
3 प्रियत्रत, चन्द्र, कुबेर, वायु, यम, अग्नि और वरुण सर्वसिद्धि प्रदायिनी महालक्ष्मी का उपर्युक्त
>|मुख्य पर्व दिनों में पूजन करते थे। मार्कण्डेय पुराण में महालक्ष्मी की उपासना के लिए
| महारात्रि (दीपावली की रात्रि) का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है।
दीपावली की कथा
>> 33259 हो
के र ब्रह्मा ने, तीसरी बार
>|शिव ने, चौथी बार सागरमंथन के समय पुनः विष्णु ने, फिर मनु और पाताल ने, भाद्रपद ञ
>|शुक्ल अष्टमी से लेकर आश्विन तक ब्रह्मा ने इनकी पूजा की थीं। शेष देवताओं ने चैत्र |-
'एक बार शौनकादि ऋषियों ने सनतकुमार जी से पूछा--'' भगवन्! दीपमालिकोत्सव |.
क्यों किया जाता है, जबकि दीपावली का पर्व विशेषतः लक्ष्मी पूजन का है?”
5 (२०॥ >>
$|( दीपावली ) के अवसर पर श्री लक्ष्मी जी के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं का पूजन
छा
डर
हुट्हत्डत्डुटइत
>| ऋषियों की इस शंका को सुनकर सनतकुमार जी कहने लगे--“'हे ऋषियों! जब |£
< दैत्ययाज बलि ने अपने भुजबल से अनेक देवताओं को बंदी बना लिया तो कार्तिक |*
अमावस्या के दिन स्वयं विष्णु भगवान ने वामन रूप धारण करके उसे बांध लिया और | «
£| समस्त बंदी बनाए गए देवताओं को कारागार से मुक्त करा दिया। कारागार से मुक्त
>| होकर सभी प्रमुख देवों ने क्षीर सागर में लक्ष्मी सहित विश्राम किया। इसी कारण दीपावली
<| के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ अन्य देवताओं के भी पूजन व शयन की व्यवस्था
5 | करनी चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी अन्य देवताओं के साथ वहीं विश्राम करेंगी। लक्ष्मी [*
*| जी तथा देवताओं के शयन के लिए ऐसी शय्या बिछानी चाहिए जिसको किसी प्राणी |
>| के लिए न प्रयोग किया गया हो। उस शब्या पर सुंदर-नवीन वस्त्र व चादर बिछाकर
*| तकिया-रजाई आदि लगा दें। तत्पश्चात् सुगन्थित कमल पुष्य भी शय्या पर बिछायें,
ई| क्योंकि लक्ष्मी जी का निवास प्राय: कमल में रहता है। हे ऋषियो! इस प्रकार विधिपूर्वक
3| श्रद्धायुक्त होकर देवताओं व भगवती लक्ष्मी के पूजन से वे स्थायी निवास करती हैं।
»| भगवती लक्ष्मी के भोग के लिए गाय के दूध के खोये ( मावा ) में मिश्री, लौंग, कपूर |«
5 एवं इलायची आदि सुगन्थित द्रव्य मिलाकर मोदक ( लड्डू) बनाने चाहिए।
._ ...... ने पुनः प्रश्न किया--'' भगवन्! जब राजा बलि ने लक्ष्मी जी व देवताओं |
<| को अपने वश में कर लिया था तो फिर लक्ष्मी जी ने उसका त्याग कब किया?" ट
सनतकुमार जी ने उत्तर दिया--“'हे ऋषियो! एक बार देवराज इन्द्र से भयभीत।|&
| होकर राजा बलि कहीं जा छिपा। इन्द्र ने उसे ढूंढ़ने का प्रयल किया। तभी उन्होंने|:
#»| देखा कि बलि गधे का रूप धारण कर एक खाली घर में समय व्यतीत कर रहा|+
* | है। इन्द्र वहां पहुंचे और बलि से उनकी बातचीत होने लगी। बलि ने इन्द्र को तत्वज्ञान|£
*| का उपदेश देते हुए काल-समय की महत्ता समझाई। उनमें बातचीत चल ही रही |5
थी कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से अत्यंत दिव्य रूपी एक स्त्री निकली।|3
»| उसे देख इन्द्र ने पूछा--''हे दैत्यराज! तुम्हारे शरीर से निकलने वाली यह आभायुक्त |?
स्त्री देवी है अथवा आसुरी या मानवी?”'
राजा बलि ने उत्तर दिया--“राजन! यह देवी है न आसुरी और न ही मानवी।
*| यदि तुम इसके सम्बन्ध में अधिक जानना चाहते हो तो फिर इसी से पूछो।”'
छ्झछछ
नघुतहुतत
>>
ऊँ
> के पुत्र विरोचन ही जानते हैं और न उनके पुत्र यह बलि ही। शास्त्रवेत्ता मुझे दुस्सहा,
] क्यों नहीं रहना चाहती?”
तब मुस्कराती हुईं शक्तिरूपा स्त्री बोली- देवेन्द्र! मुझे न तो दैत्यराज प्रहलाद
भूति और लक्ष्मी के नामों से पुकारते हैं। परन्तु तुम तथा अन्य देवगण मुझे भली
प्रकार नहीं पहचानते।'”
इन्द्र ने प्रश्न किया--“'हे देवी! जब इतने दीर्घधकाल तक आपने दैत्यराज में वास
किया है तो फिर अब इनमें ऐसा कौन-सा दोष उत्पन्न हो गया, जो आप इनका
5 | परित्याग कर रही हैं? आप यह भी बताने की कृपा कीजिए कि आपने- मुझमें ऐसा
»| कौन-सा गुण देखा है जो मेरी ओर अग्रसर हो रही हैं?"
लक्ष्मी जी ने उत्तर दिया--हे आर्य! मैं जिस स्थान पर निवास कर रही हूं,
डैबहां से मुझे विधाता नहीं हटा सकता, क्योंकि मैं सदैव समय के प्रभाव से ही
डै| एक को त्याग कर दूसरे के पास जाती हूं। इसलिए तुम बलि का अनादर न करते
>| हुए इनका सम्मान करो।"
इन्द्र ने पूछा--“'हे देवी! कृपा कर यह बताइए कि अब आप असुरों के पास
न्क्त््क्ह्क्त्क्क्ड् र
55555 थ
-छझफ्रमुद दब क छ
[बट हट चुत घट इट
..__ मात्रा बढ़ गई है। आलस्य, निद्रा, अप्रसन्नता, असन्तोष, कामुकता तथा विवेकहीनता |
लक्ष्मी जी बोलीं--''मैं उसी स्थान पर रहती हूं जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम
| तथा धर्म रहते हैं। इस समय असुर इससे परामुख हो गए हैं। पूर्वजन्म में यह सत्यवादी
जितेन्द्रिय तथा ब्राह्मणों के हितैषी थे, परन्तु अब यह ब्राह्मणों से द्वेष करने लगे
| हैं। जूठे हाथों घृत छूते हैं और अभक्ष्य भोजन करते हैं। साथ ही धर्म की मर्यादा |?
तोड़कर विभिन्न प्रकार के मनमाने आचरण करते हैं। पहले ये उपवास एवं तप करते
थे, प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व जागते थे और यथासमय सोते थें। परन्तु अब यह देर |£
से जागते तथा आधी रात के बाद सोते हैं। पूर्वकाल में यह दिन में शयन नहीं करते |*
थे। दीन-दुखियों, अनाथों, वृद्ध, रोगी तथा शक्तिहीनों को नहीं सताते थे और उनकी |»
“| अन्न आदि से हर प्रकार की सहायता करते थे। पहले ये गुरुजन के आज्ञाकारी |?
तथा सभी काम समय पर करते थे। उत्तम भोजन बनाकर अकेले नहीं खाते थे, |
'वरन् पहले दूसरों को देकर बाद में स्वयं ग्रहण करते थे। प्राणीमात्र को समान समझते
|5| हुए इनमें सौहार्द, उत्साह, निरहंकार, सत्य, क्षमा, दया, दान, तप एवं वाणी में सरलता |>
«| आदि सभी गुण विद्यमान थे। मित्रों से प्रेम-व्यवहार करते थे। परन्तु अब इनमें क्रोध |»
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&5#$ऋऋ<5&
£| प्रकार पालन-पोषण नहीं करते। इन सब कारणों से इनके शरीर ब चेहरे की कांति'
क्षीण हो रही है। परस्त्री गमन, परस्त्री हरण, जुआ, शराब, चोरी आदि दुर्गुण अधिक |+
आ जाने के कारण इनकी धार्मिक आस्था कम हो गईं है। अतः हे देवराज इन्द्र!
मैंने निश्चय किया है कि अब मैं इनके घर में वास नहीं करूंगी। इसी कारण मैं|*
दैत्यों का परित्याग कर तुम्हती ओर आ रही हूं। तुम प्रसन्ततापूर्वक मुझे अंगीकार|&
करो। जहां मेरा वास होगा, वहां आशा, श्रद्धा, धृति, शान्ति, जय, क्षमा, बिजित|?
और संगीत--ये आठ देवियां भी निवास करेंगी। चूंकि तुम देवों में अब धार्मिक
भावना बढ़ गई है, इसलिए अब मैं तुम्हारे यहां ही वास करूंगी।'”
सनतकुमार जी आगे बोले--''अतः हे ऋषियो! जो भी व्यक्ति लक्ष्मी को पाना
चाहता है, उसे तदनुकूल ही आचरण करना चाहिए।”
तहत हर चुत चुप
39% 3953 53% 55 5 5 35 5 5555 55 55 555 5 5 उठ उठ उठ डक
|*|
# लक्ष्मी पूजन सामग्री
१... परत रर्ज्त्र ३. दूध ४. धूप ५. कर्पूर
4. दिवासलाई. ७ नारियल. ८. सुपारी ९. रेली ९० थीं
११. लालक्सा १२. मेवा १३. गंगाजल १४. फ़ल १५. लक्ष्मी-प्रतिया
१६. कलावा.. ९१७ रई १८. सिंदूर. १९. शहद २०. यणेश्ञ-प्रतिमा
२१. फूल रर. दूब २३. दही २४ दीप. २५. जल-प्रात्र
२६.मिगई २७ हुलसी
लक्ष्मी पूजन विधि
'यजमान फ्ली सहित शुद्ध जल से स्तान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, पूर्व की ओर |&
| मुख करके आसन पर बैठें। पुरोहित यजमान के सामने बैठे। मध्य में चौकी पर गणेश ३
आदि देवताओं का मण्डल बनायें। कलश स्थापित करें। दूसरी चौकी पर शुद्ध वस्त्र बिछाकर |>
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द्व
उस पर लक्ष्मी जी की स्वर्णमूर्ति अथवा जो उपस्थित हो, रखें। के
| षोडशोपचार पूजन के लिए धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, शुद्ध जल, शंख, घंटा आदि ५
|
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ई। सब शुद्ध करके रखें। यजमान का वरण कर आचमन करके अपने कुलगुरु का नाम
करें तथा निम्न श्लोक पढ़ें-
अपवित्र: पवित्रो वा सर्वांवस्थां गतो5पि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्ष॑ं स बाह्मभ्यन्तरः शुचि:॥
इस प्रकार पवित्र होकर निम्नलिखित संकल्प करें-
स्थिर लक््ीप्राप्यर्थ सर्वाभीष्ट फ़लप्राप्तये
आयुरारोस्वैश़्वर्याभिवृद्धयर्थव्यापरे लाभार्थ च.
गणप्रति नवग्रह-कलश-मातृका पञ्चोपचार
पूजनपूर्वक॑ श्री लक्ष्मी पूजन करिष्ये। $
अब सर्वप्रथम गणेश जी का स्मरण कर प्रणाम करें और अक्षत लेकर धूप-दीप आदि[$
से पूजन करें। फिर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का पूजन पाद्य-अर्घ्य आदि से करें।
नवग्रहों का पूजन करें-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च, शुक्र: , शनि-राहु-केतव:, सर्वेग्रहा: शांतिकरा भवन्तु॥
+3353323329232%%
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इसके पश्चात् धातु अथवा मिट्टी का कलश रखें। उसमें सर्वोषधि, गन्ध, जल, तीर्थजल, |
'फल-पल्लव, पुंगीफल, अक्षत व पुष्प डालकर लाल वस्त्र मुंह पर रख उस पर नारियल रे
रखें। फिर दूसरा लाल वस्त्र एवं आम्रपत्र रख लाल डोर लपेटें और वरुण का पूजन करें।|&
कलश पूजन के पश्चात् गौरी आदि षोड़श मातृका पूजन कर आचार्यू का वरण करें। ्!
आचार्य यजमान को कंकण बांधे।
इसके बाद लक्ष्मी जी का पूजन करें। यहां स्वर्णमूर्ति, गिन््नी, स्वर्ण आभूषण, रुपये आदि
को लक्ष्मी जी का स्वरूप मानकर पहले लक्ष्मी जी का ध्यान करके प्रार्थना करें--“'हे डे!
सर्वव्यापक नारायण! स्वर्ण के समान रूप बाली, स्वर्णरजत निर्मित, मालायें धारण करने वाली, |#
हिरणी के समान आकर्षक गति वाली भगवती लक्ष्मी जी का मेरें घर में निवास कराओ।'' |*
तत्पश्चात् मूर्ति में लक्ष्मी जी का आवाहन करें और निम्नलिखित श्लोक पढ़ें--
अस्थां मूर्तों समागच्छ स्थिति करुणया कुरु।
किंचित् कालं॑ सदाभद्रे! विश्वेश्वरि!नमोःस्तुते॥
तदुपरान्त लक्ष्मी जी को आसन, पाद्य, अर्ध्य एवं स्नानार्थ जल अर्पित करें। दुग्ध, दही, |>
घृत, मधु व शर्करा अर्थात् पंचामृत से उन्हें स्नान करावें। फिर रेशमी वस्त्र, उपवस्त्र, मधुपर्क, |“
||
>>3डऊडडड डे डंडे डड डे डडे_ सगे उडुऊडडऊऊडउऊऊडऊडडडड डड55 8
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मधुपर्क, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर, कुंकुम, पुष्पमाला, दूर्वा, इत्र और पुष्प चढावें। धूप- |>
दीप दिंखावें। नैवेद्य अर्पित करें और आचमन करावें। अन्त में ताम्बूल, ऋतु फल भेंटकर |
प्रार्थना करें--
अरुण कमल संस्था तड़ज: पुज्जवर्णा। करकमल धृतेष्ठा भीति युग्माम्बुजा च॥ अ
मणि कटक विचित्रालंकृता55कल्प जालै:। सकल भुवन माता मृदगृहे स्थैर्यमीयात्॥
रोगादि -दारिद्रय॑ पाप॑ च्॒ अपमृत्यव:। भय-शोक-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वबदा॥
श्रीवचस्वमायुष्यमारोग्यं विधातुपवमान महीयते । धन॑ धान्य॑ पशुं बहुपुत्र लाभशतसम्वत्सरदीर्घमायु: ।
इस प्रकार प्रार्थना कर दक्षिणा चढ़ावें। तत्पश्चात् गन््ध आदि से पूजा करें। पांव, जानु, |>
'कटि, नाभि, जठर, वक्षस्थल, नेत्र और सिर का नाम लेकर पूजा करें। $।
फिर पूर्व आदि दिशाओं में आठ सिद्धियों और आठ लक्षिमयों की पूजा करें। मसीपात्र | >
5| (दवात), बही, लेखनी आदि की पूजा करें (नोट: यह पूजन विधि आगे देखें)। |
अंत में पुष्पांजलि समर्पित कर प्रार्थना करें--
पुष्पांजलि गृहाण त्वं पादाम्बुजयुगापितम्, मया भकत्या सुमनसा प्रसोद परमेश्वारि।
>| ब॑र्षाकाले महाघोरे बन्मया दुष्कृतं कृतम् सुख रात्रि प्रभातेउद्य तन््मे लक्ष्मीवव्यपोहतु#
5
पूजा समाप्त कर आचार्य आदि को दक्षिणा प्रदान करें । तत्पश्चात् देवताओं का विसर्जन करें--
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकौम्, इष्टकामसमुद्धय्र्थ पुनरागमनाय च॥
इसके बाद श्रीसूक््त, गोपाल सहस्ननाम और लंक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें। सम्पूर्ण रात्रि
श्रीसूक्त के १०८ पाठ करें। प्रातःकाल श्रीसूक्त से हवन करें और यथाशक्ति ब्राह्मणों
भोजन करावें।
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5 लेखा-पत्र पूजन
3| नवीन लेखा-पत्राणि लेकर लेखनी द्वारा उस पर स्वास्तिक बनावें। फिर स्वास्तिक के चारों
पु एक गोल मंडल “श्री सरस्वत्यै नम:' लिख-लिखकर बनाएं। तत्पश्चात् ध्यान करैं--
$| या कुन्देदु तुषारहार धवला या शुध्रवस्त्रावृता।
शत या वीणा बर दंड मंडित करा या श्वेत पदमासना॥
हु या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभि्देवे सदा वबन्दिता।
हर सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाडयापहा॥
| 5.
हर -
ऋ&इऋइुछछछ 55 ऋऋछऋ#ऋ#ऋ55ूऋू55 ४
[४5७७७
है हज हू हू कह हू. हू हू हक
म्््ड बाद निम्नलिखित मंत्र
सरस्वती महाभागे रक्षार्थ मम सर्वदा।
आवाहयाम्बहं देवि सर्व कामार्थ सिद्धये ॥
फिर ओ भूभुंवः सरस्वत्य नम: कहते हुए अर्ध्य, पाद्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, भूषण,
गन्ध, सिन्दूर, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, पुनराचमन, ताम्बूल, पुंगीफल एवं दक्षिणा समर्पित 2!
कर कर्पूर से आरती उतारें।
क5%%%9%७७७।
$|
तिजौरी पूजन
तिजौरी अथवा भण्डारगार का पूजन करने के लिए सर्वप्रथम निम्नलिखित श्लोक पढ़कर |*
|आवाहन करें- है
स्वर्ण भासं कुबेर॑ च गदापाण्याश्व।
चित्रणी पदमायहितं निधीश्वरमहं भजे॥
तत्पश्चात् श्रीकुबेराय नम: मंत्र से विधिपूर्वक पूजन करें। फिर नीचे लिखे मंत्र से |»
जोड़कर प्रार्थना करें--
अड्डे 23322
ल्खुटइु जुट जुट चुत चुत चुत हट हट हट हर चुरा
६7 स्स्फस्प्य्य्स्स्ह्य््स्ह््य्ड्छ थ्ध्य्््य््प्य्य्य्य्््प्य्सश्््ज्प्य्श्य्ड्य
धनदायनमस्तुभ्य॑ निधिपदमाधिपाय च ।
भवन्तु त्वव््रदान मे धन्य धान्यादि सम्पदा॥
कुबेराय नमस्तुभ्य॑ नाना भाण्डार संस्थिता।
यत्र लक्ष्मीभ॑वेद्दैब॑ धन॑ चिनु नमो5स्तुते॥
तुला पूजन
स्वच्छ तुला (तराजू) को. वस्त्रासन पर स्थापित करके निम्न मंत्र से प्रार्थना करें--
त्वं तुले सर्व देवानां प्रमाणामहि कीर्तिका।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि धर्मार्थसुख हेतव॥
फिर तुला अधिष्ठातृ देवतेभ्यो नमः मंत्र से पूर्व की भांति अर्घ्य-पाद्य आदि से पूजन
कर, नीचे दिए मंत्र द्वारा पुष्पांजलि समर्पित करें--
पदार्थ मानसिद्धयर्थ ब्रह्मणा कल्पिता पुरा।
तुला नामेति कथितां संख्या रूपामुपास्महे॥
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५ बहन ने भाई को निमन्त्रण भेजा। यम उद्विग्न हो उठे । उन्हें बहन के टीके की याद आई। शव
् यमुना के घर पहुंचे। बहन बहुत प्रसन्न हुई। उसने भाई का टीका किया। टीके के बाद यम |
| ने कुछ मांगने को कहा। बहन ने मांगा कि आज के दिन जो बहनें भाई का टीका करें, उनकी |
3 | रक्षा होनी चाहिए।
६. भ्रविष्योत्तर पुराण में इस कथा के अन्त में कहा गया हैं--“हे युधिष्ठिर! यमुना ने
दर! कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ही अपने भाई को निमन्त्रित किया था।'' अतः इस पर्व
|>| का नाम यम द्वितीया पड़ गया। इस दिन बहन के स्नेहपूर्ण हाथों से परोसा भोजन ग्रहण
करना चाहिए।
अन्य कथाएं
'एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा अपने सालें के साथ 'चौपड़ खेलता था। साला जीत जाता
था। राजा ने सोचा कि भाई दूज पर यह बहन से टीका कराने आता है, इसलिये जीत जाता है।
अतः राजा ने भाई दूज आने पर साले को आने से रोक दिया। साथ हीं कड़ा पहरा लगा दिया कि
बहन आ सके | जब भैग्रा.दूज पर भाई बहन के पास टीका कराने नहीं पहुंचा तो वह बहुत दुःखी
हुईं। तब भाई यमराज की कृपा से कुत्ते का रूप धारण कर राजा के कड़े पहरे के बांवजूद बहन
व्डड्ऋ हू डक हक एफ हक हू हू हू हू हू हू उडडडडडडअडडडडडडडअड2 92999 &%
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है के यहां 'पहुंचा। बहन टीका लगे हाथ बैठी थी । कुत्ते को देखकर उसने प्रेम से अपना टीके से सना |»
हाथ उसके माथे पर फेरा। कुत्ता वापस चला गया। लौटकर वह राजा से बोला--'“मैं भाई दूज
का टीका करा आया, आओ अब खेलें।'' राजा बहुत चकित हुआ। तब साले ने सारी बात सुनाई। |
राजा टीके का महत्व मान गया और अपनी बहन से टीका कराने चला गया। 04
भाईं दूज की एक कथा जैन साहित्य में भी रोचक ढंग से दी गई है। जैन धर्म के प्रसिद्ध |
ग्रन्थ कल्पसूत्र में बताया गया है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवान महावीर के निर्वाण | >
5 | के पश्चात् नन्दिवर्धन बहुत ही दुःखी हुए। तब उस घटना के तीसरे दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल | *
द्वितीया को नन्दिवर्धन की बहन सुदर्शना ने भाई को भोजन के लिए अपने घर आमन्त्रित किया। $
उसने अपने हाथों से बनाकर नन्दिवर्धन को सुस्वाद भोजन परोसे | अत: यह दिन क्रातृ द्वितीया | १
या भाई दूज के नाम से प्रसिद्ध होकर हर दीपावली पर मनाया जाने लगा। शा
भाई दूज को कई लोक कथाओं ने हृदयग्राही बना दिया है। एक कहानी के अनुसार पल
एक भाई अपनी बहन के यहां भाई दूज को टीका कराने गया। जब वह टीका कराकर और
खाना खाकर लौटने लगा तो बहन ने आटा पीसकर रास्ते के लिए लड्डू बांध दिये।दुर्भाग्व
से आटे की चक्की में एक सांप बैठा था जो पिस गया। भाई के जाने के बाद जब बहन
७ >छछड़
बढ
>5353ऊऊऊडडडऊडड
“| को यह बात'पता चली तो बह उसके पीछे-दौड़ी। वह अपने बच्चे को अकेला सोते छोड़
>| गई। रास्तों और जंगलों को पार करती हर एक से पूछती वह एक पेड़ के नीचे पहुंची, जहां
भाई दोपहर को सुस्ताने के लिए सो गया था। लंड्डू की पोटली भाई ने एक पेड़ से बांध
रखी थी। बहन ने झट वे लड्डू खोलकर फेंक दिये। रक्षा के लिये वह खुद ही भाई के
साथ हो ली। रास्ते में एक औरत ने बताया कि जो सांप चक्की में पिसकर मर गया था, वह
सांप व सांपिन तेरे भाई की शादी के दिन इसे काटने आयेंगे। फिर ऐसा ही हुआ। सांप-
सांपिन दोनों आये, पर बहन ने उनके काटने से पहले ही उन्हें मारकर भाई को बचा लिया।
एक अन्य कथा में एक भाई गरीब था। एक बार वह भाई दूज पर बहन से टीका कराने
के लिए निकला। बह रास्ते भर सोचता रहा कि बहन को देने के लिए तो कुछ नहीं है, क्या
देगा! रास्ते में उसने नदी पार की तो नदी बोली--'' तेरी मां ने तेरे जन्म पर भेंट चढ़ाने का
वायदा किया था। आज तक नहीं चढ़ाई। अतः मैं तुझे लहरों में सोख लेती हूं।''
भाई ने कहा--''बहन से टीका करा आऊं, फिर सोख लेना।'”
आगे रास्ते में शेर व शेरनी मिले। वे बोले--' तेरी मां ने तेरे जन्म पर बकरा चढ़ाने का
वायदा किया था। आज तक पूरा नहीं किया। अब हम तुझे खायेंगे।'”
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ढि छह छह छ छछ
उऊडऊड उऊडडडऊउऊडडडड ऊ जद ड डडड ड उ डड 5
'बहन से टीका करा आऊं, फिर खा लेना।'' #
जंगल पार करते ही पहाड़ ने कहा--'' तेरे जन्म के लिए तेरी मां ने पूजा में भेंट देने को
<| कहा था। आज तक नहीं दिया।'' भाई ने उससे भी बहन से टीका कराकर आने की बात कही। है
»*| वह बहन के घर पहुंचा। बहन के टीके के कारण उसे न पहाड़ ने रोका, न शेर-शेरनी ने और | *
<| न नदी ने। फिर भी बहन ने सोने की ईंट से पहाड़ की पूजा की, शेर-शेरनी को बकरा चढ़ाया |
“ब नदी को भेंट चढ़ायी। इन सबने उन्हें आशीर्वाद दिया कि ऐसे ही भाई-बहन सबके हों।. |5
«| नैपाल में भाई दूज को भाई टीका के नाम से दीवाली पर्व के पांचवें दिन अत्यन्त उत्साह से |”
| मनायाजाता है।इसके बारे में यह कथा प्रसिद्ध है कि लंका में विजय के बाद राम अयोध्या लौटे। |
-| युद्ध में जीवित लोगों का उनके परिवार के सदस्यों व मित्रों ने भव्य स्वागत किया। इस अवसर |
परबहनों ने भाइयों को" पिसह पहना नि तथा आल पर का लगाकर उनके दब जम लक, ऊ
<| की।तब से बहनें हर वर्ष इस दिन अपने भाइयों के टीका लगाती हैं। फिर बहनें देहरी में बैठकर *
*| अखरोट को एक ही बार में तोड़कर छत पर फेंक देती हैं। यह भी माना जाता है कि हिरण्यकश्यप | >
£| का वध देहरी पर किया गया था, इसलिए देहरी में अखरोट तोड़ा जाता है। ९4
>| _ इस तरह भाई दूज की अनेकानेक कथाएं जुड़ती गईं और यह पर्व भाई-बहन के अनन्य $
प्रेम के प्रतीक स्वरूप लोकप्रिय हो गया। डर
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हा उद्ड्छठठठऊठउठडघ डड ड घ उ 55
० भगवान श्रीकृष्ण ने कहा--““कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं, इसलिए हमें | >
है| गो-वंश की उन्नति के लिए पर्वत व वृक्षों की पूजा कर उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी |
>| परतु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रज को बचा| ह
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| लिया। फलतः इन्द्र को लज्जित होकर सातवें दिन क्षमा-याचना करनी पड़ी। तभी से|<
रछढ2&%छ७छ७&छ ७
ऊँ
लू छछछणछछ
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता।
उन वश लोक कक नं पाता#चब०
श्री लक्ष्मी जी की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥जब०
स्थिर चर जगत रचाए शुभ कर्म नर लाता।
राष प्रताप मैया क्ली शुभ दृष्टि चाहता#जय०
उड्डडडडडडड32 23295
जयजगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे३
भक्त जनन के संकट; क्षण में दूर करे॥ ड०
जो ध्याबे, फल पावे, दुःख विनसे मन का।
सुख-सम्पत्ति घर आबे, कष्ट मिटे तन का॥ ०
माता-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ 37०
कुप पूरण परमात्मा, तु अन्तयाँघी।
पारबहा परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ 3७
तुम करुणा के सागर, तुप पालनकर्ता।
मैं मूरख खल-कामी, कृपा करो धर्ता॥ उ
सुष हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमसे पैं कुमति॥ 3०
दीनबन्धु दुःखहतां, तुम रक्षक मेरें।
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे॥ 3०
विषय विकार मिटाओ, पाप हरों देवा।
अ्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ उ»
>उुडडइडडहछछछ्5 छ छछछ
>७छ&€ 6
| होईं माता जय होई माता।
तुमको निशंदिन सेवत हर विष्णु विधाता॥ जय०
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥ जय०
माता रूप निरन््जन सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल आता॥ जय०
तू ही है पाताल बसन्ती तू ही है शुभदाता।
प्रभाव कर्म प्रकाशक जगनिधि से ज्राता॥ जय०
जिस घर थारो जासा वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले मत नहीं धड़काता ॥ जय०
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नस जाता ॥ जय०
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥ जय०
श्री होईं मां की आरती जो कोई गाता।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेंवा॥ जय:
एक दन्त दयावन्त चार भुजाधारी।
अस्तक सिन््दूर सोहे मूसे की असबारीं॥ जय०
अंधन को आंख देत कोढ़िन को काया।
आंझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥ जय०
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेया।
लड्ड॒बन का भोग लागे सन्त करें सेवा॥ जय०
दीनन कौ लाज रखों शम्भू सुत वारी।
कामना को पूरी करों जाऊं बलिहारी॥जय०
गायत्री मंत्र--3% भूर्भुक:स्व:। तत्तवितुषरष्यम् भर्गों देवस्य
धरमहि धियो यो न: प्रचोदयाद्॥ |$
: शान्ति: । वनस्पतय: |
सर्व5शान्ति: शान्तिरिव शान्ति: सा मा शान्तिरिधि ॥ ओ शान्ति! शान्ति: ।। |
डर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥ जय०
शान्ति: !!!
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धर]
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